लीगल नोटिस और कोर्ट नोटिस में फर्क / Difference between Legal Notice and Court Notice (Hindi)

नेमपाल सिंह के द्वारा


लीगल नोटिस 

       अक्सर आपने लीगल नोटिस (Legal notice) और कोर्ट नोटिस (Court notice) के बारे में सुना होगा। कई बार यह देखा जाता है कि काफी लोग लीगल नोटिस (Legal notice)  में और कोर्ट नोटिस (Court notice)  में फर्क नहीं जानते हैं। जिसकी वजह से काफी दिक्कतें आती है। जब कभी भी किसी केस में वकील को पैरवी के लिए रखा जाता है तो कई बार काफी मामलों में पहले वकील के द्वारा एक नोटिस प्रतिवादी को भेजा जाता है और दावे के साथ नोटिस में वकील के द्वारा प्रतिवादी को यह बताया जाता है कि किस प्रकार प्रतिवादी अपने किसी गैरकानूनी कार्य के लिए जिम्मेदार है और प्रतिवादी को कुछ समय भी दिया जाता है जिससे या तो प्रतिवादी वो काम वादी के लिए करे जिसे उसे कानूनन रूप से वादी के लिए करना जरुरी है या किसी प्रकार के नुक्सान की स्तिथि में वादी को हरजाना दे। जब कभी भी किसी भी व्यक्ति के वकील के द्वारा कोई नोटिस अपने दफ्तर से प्रतिवादी को भेजा जाता है और किसी किस्म का वादी के लिए दावा किया जाता है तो उसे लीगल नोटिस (Legal notice)  कहा जाता है। काफी मामलों में ख़ास तौर पर दीवानी मामलों में लीगल नोटिस (Legal notice)  भेजना जरुरी होता है। लेकिन काफी फौजदारी मामले ऐसे भी हैं जिनके अंतर्गत लीगल नोटिस भेजना जरुरी होता है जैसे नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के अंतर्गत कानूनन रूप से नोटिस भेजना जरुरी होता है। 
           अब यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि किसी दीवानी या फिर फौजदारी मामले में यदि वकील के द्वारा वादी की तरफ से यदि कोई नोटिस अपने दफ्तर से भेजा जाता है तो उस नोटिस को लीगल नोटिस (Legal notice)  कहा जाता है।




कोर्ट नोटिस 

        कोर्ट नोटिस (Court notice)  वह नोटिस होते हैं जिसके अंतर्गत कोर्ट के द्वारा संज्ञान लिए जाने पर कोर्ट के द्वारा प्रतिवादी को सूचित किया जाता है और अपना पक्ष रखने के लिए या फिर उपस्थित होने के लिए बुलाया जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कहा जा सकता है कि जब किसी भी न्यायालय के द्वारा किसी भी दीवानी या फिर फौजदारी मामले में प्रतिवादी को नोटिस भेजा जाता है तो उस स्थिति में उस नोटिस को कोर्ट नोटिस (Court notice) कहा जाता है। कोर्ट नोटिस (Court notice)  को लीगल नोटिस नहीं कहा जा सकता। क्योंकि लीगल शब्द किसी प्रकार के कानूनी नोटिस को प्रदर्शित करता है तो लोगों द्वारा यह समझ लिए जाता है कि कोर्ट नोटिस  (Court notice) की बात की जा रही है लेकिन उसका मतलब कतई कोर्ट नोटिस नहीं होता है।




क्या कोर्ट नोटिस या लीगल नोटिस लेना जरुरी होता है ?

         अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या कोर्ट नोटिस (Court notice)  या फिर वकील द्वारा भेजा गया लीगल नोटिस (Legal notice)  लेना जरुरी होता है।  सामान्यतः यह देखा जाता है कि काफी लोग कोर्ट नोटिस  (Court notice) या लीगल नोटिस (Legal notice)  को कानून की जानकारी ना होने की वजह से लेने से इंकार कर देते हैं या फिर उनके मन में किसी बात का या कोर्ट केस का डर होने की वजह से काफी लोग लीगल नोटिस (Legal notice)  या फिर कोर्ट नोटिस (Court notice)  को लेने से इंकार कर देते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या कोर्ट नोटिस को या फिर लीगल नोटिस (Legal notice)  को लेने से इंकार करना चाहिए या नहीं ? इसके जवाब में यह पुख्ता  तौर पर कहा जा सकता है कि कभी भी कोर्ट नोटिस (Court notice)  को या फिर लीगल नोटिस (Legal notice)  को लेने से इंकार नहीं किया जाना चाहिए। भारतीय कानून के मुताबिक जब कभी भी किसी मामले को लेकर या किसी विवाद को लेकर किसी के द्वारा कोर्ट में केस किया जाता है तो कोर्ट की पहली सुनवाई के बाद और या फिर केस फाइल किये जाने के बाद कोर्ट के द्वारा मुल्जिम को या फिर प्रतिवादी को कोर्ट के द्वारा नोटिस भेजा जाता है।  कई ऐसे मामले होते है जिनमें वकील के द्वारा लीगल नोटिस (Legal notice)  भेजने के द्वारा सूचित किया जाता है और किसी  किस्म का दावा किया जाता है या फिर किसी मामले को या फिर विवाद को लेकर जवाब माँगा जाता है। इस तरह के सभी मामलों में कोर्ट नोटिस  (Court notice) या फिर लीगल नोटिस (Legal notice)  के द्वारा प्रतिवादी को सूचना दी जाती है और अपने पक्ष को साबित करने का मौका दिया जाता है।  कोर्ट नोटिस  (Court notice) को या फिर लीगल नोटिस को ना लेने का मतलब यह समझा जाता है कि प्रतिवादी जान बूझ कर कोर्ट की कार्य वही को नजरअंदाज करना चाहता है। और सम्बंधित मामले में जानबूझ कर अपना  पक्ष नहीं रखना चाहता है। 




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