Section 125 crpc in Hindi. भरण पोषण कानून क्या है ?
नेमपाल सिंह के द्वारा
भरण पोषण कानून क्या है?
भरण पोषण कानून सी. आर. पी. सी. की धारा 125 के अंतर्गत आता है जो कि एक बहुत कारगर कानून है उन महिलाओं के लिए जिनको उनके पति के द्वारा अपने व् बच्चों के भरण पोषण के लिए खर्चा नहीं दिया जाता I इस कानून के अंतर्गत माता पिता यदि अपना भरण पोषण करने में सक्षम नहीं हैं तो वो भी इस धारा के अंतर्गत गुजारा भत्ता ले सकते हैं I
125 सी आर पी सी :
इस धारा के अंतर्गत यदि कोई शादीशुदा व्यक्ति समुचित संसाधनों के होते हुए बिना किसी उपयुक्त कारण के भरण पोषण देने से निम्न लोगों को माना कर देता है या फिर नज़र अंदाज़ करता है :
(अ). अपनी पत्नी को जो कि अपना भरण पोषण करने में सक्षम नहीं है।
(ब). अपने वैध और अवैध नाबालिग बच्चों को वह चाहे शादीशुदा हैं या नहीं हैं जो कि अपना भरण पोषण नहीं सकते हैं।
(स). अपने वैध और अवैध बच्चों को (जिसमें शादीशुदा लड़की शामिल नहीं है) जो बालिग हो चुके हैं और जो कि किसी भी कारण से यदि शारीरिक रूप से विकलांग हैं या फिर किसी किस्म की क्षति के कारण सक्षम नहीं हैं कि वह अपना भरण पोषण कर सकें।
(द). अपने माता व् पिता को जो अपना भरण पोषण नहीं कर सकते हैं।
तो इन सभी स्थितियों में उस व्यक्ति को भरण पोषण देना होता है जिसके लिए फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट ये सबूत देखने के बाद कि उस व्यक्ति ने उपरोक्त श्रेणी के व्यक्तियों को भरण पोषण देने से इंकार किया है या फिर भरण पोषण देने के लिए उन्हें नज़र अंदाज़ किया है तो मजिस्ट्रेट मासिक भरण पोषण के लिए आदेश कर सकता है जो कि आदेश उस व्यक्ति की पत्नी, बच्चे व् माता - पिता के सन्दर्भ में किया जाता है I प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट किसी ऐसी स्थिति में ये भी आदेश दे सकता है कि यदि उसकी कोई शादीशुदा लड़की बालिग नहीं है और उसका पति उसका भरण पोषण करने में सक्षम नहीं है तो वह उस लड़की को तब तक भरण पोषण दे जब तक कि वो 18 वर्ष की ना हो जाए I दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उस व्यक्ति की यदि कोई नाबालिग शादीशुदा बेटी है और उसका पति उस बेटी का भरण पोषण करने में सक्षम नहीं है तो पिता को आदेश के अनुसार उस बेटी को जब वह 18 वर्ष की उम्र की नहीं हो जाती तब तक भरण पोषण देना पड़ सकता है I
इसके अलावा केस चलने के दौरान प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट अंतरिम भरण पोषण के आदेश भी कर सकता है कि वह व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चों या फिर यदि केस माता व् पिता की ओर से है तो माता व् पिता को मासिक अंतरिम भरण पोषण दे साथ ही साथ उस व्यक्ति को केस का खर्च भी आदेश के अनुसार देना पड़ सकता है I यह वह अमाउंट होता है जो केस के अनुसार मजिस्ट्रेट को उचित लगता है और जो वादी को दिया जाना जरुरी हो I ज्ञात रहे कि इस किस्म की राशि नोटिस के 60 दिनों के अंदर अंदर देना होता है I
जब भी भरण पोषण का आदेश होता है तो वो आदेश के अनुसार देय राशि या तो आदेश किये जाने के बाद से लंबित समझी जाती है या फिर उस दिन से लंबित समझी जाएगी जब वादी ने अपने केस को फाइल किया था I यह सब मजिस्ट्रेट के आदेश पर निर्भर करता है I
भरण पोषण के आदेश की अनुपालना ना करने पर सजा :
जब कभी भरण पोषण का आदेश मजिस्ट्रेट के द्वारा किया जाता है तो प्रतिवादी यदि बिना किसी समुचित कारण के भरण पोषण, केस का खर्च, या फिर अंतरिम भरण पोषण जिसके सन्दर्भ में आदेश किया गया है नहीं देता है तो मजिस्ट्रेट के द्वारा वारंट जारी किया जाता है जो प्रत्येक भरण पोषण के आदेश के लिए प्रतिवादी को एक माह तक के लिए जेल में डाला जा सकता है या फिर जब तक प्रतिवादी के द्वारा आदेश के अनुसार राशि नहीं दे दी जाती उस व्यक्ति को जेल में रहना पड़ सकता है I ज्ञात रहे कि यह जरुरी है कि लंबित राशि के लिए वादी के द्वारा आदेश के एक वर्ष के भीतर अर्जी मजिस्ट्रेट को दिया जाना जरुरी है I
इसके अलावा इस धारा के अंतर्गत यदि प्रतिवादी कहता है कि वह अपनी पत्नी को भरण पोषण देने के लिए राजी है यदि उसकी पत्नी उसके साथ रहे तो यदि उसकी पत्नी प्रतिवादी के साथ ना रहना चाहे जिसके लिए वादी के पास यदि कोई समुचित कारण हो और यदि मजिस्ट्रेट के द्वारा ये मान लिया गया हो कि वादी का प्रतिवादी के साथ ना रहने का कोई ठोस कारण है तो पत्नी को मजिस्ट्रेट के द्वारा प्रतिवादी के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता I
>> यदि पति अपनी पत्नी के जीवन काल में किसी दूसरी महिला से विवाह करे या फिर किसी किस्म का अनुबंध उस दूसरी महिला के साथ करे तो वादी के द्वारा प्रतिवादी के साथ रहने के लिए मना करने का ये उचित कारण माना जायेगा I
>> ज्ञात रहे कि यदि पत्नी यानि कि वादी का किसी गैरमर्द के साथ सम्बन्ध है या फिर वह बिना किसी ठोस कारण के प्रतिवादी के साथ रहने से इंकार करती है और यदि वादी और प्रतिवादी यानि कि पत्नी व् पति दोनों अपनी रजामंदी से अलग अलग रह रहे हैं तो वादी यानि पत्नी भरण पोषण, केस का खर्च या फिर अंतरिम भरण पोषण लेने की हकदार नहीं मानी जाएगी और यदि मजिस्ट्रेट के द्वारा आदेश कर दिया गया है तो उस आदेश को मजिस्ट्रेट के द्वारा रद्द किया जा सकता है I
>> इस धारा के अंतर्गत यदि पति व् पत्नी का तलाक हो जाता है तो भी पत्नी भरण पोषण ले सकती है और यदि पत्नी तलाक के बाद दूसरा विवाह कर लेती है तो वह भरण पोषण के लिए हकदार नहीं मानी जाएगी I
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