धारा 497 भारतीय दंड संहिता को निरस्त करने का कारण (हिंदी) Why the Hon'ble Supreme Court Abolished Section 497 of IPC?
नेमपाल सिंह के द्वारा
धारा 497 भारतीय दंड संहिता को निरस्त करने का कारण
Why the Hon'ble Supreme Court Abolished Section 497 of IPC?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए एक एहम फैसले में धारा 497 IPC भारतीय दंड संहिता को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 497 IPC को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह धारा नागरिकों के समानता के अधिकार के खिलाफ है। ज्ञात रहे कि माननीय मुख्या न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा व् अन्य पांच जजों की बैंच ने धारा 497 IPC भारतीय दंड संहिता को माह सितम्बर 2018 में अपने एक फैसले के अंतर्गत निरस्त कर दिया था।
क्या था धारा 497 के अंतर्गत :
धारा 497 IPC भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत परिभाषा के अनुसार दिया गया था कि यदि कोई शादीशुदा व्यक्ति अपनी पत्नी को किसी दूसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए इजाजत दे देता था तो इस धारा के अंतर्गत वह व्यभिचार (Adultery) नहीं माना जाता था। अर्थात इस धारा के अंतर्गत यदि किसी शादीशुदा व्यक्ति की पत्नी अपने पति की मर्जी या इजाजत से किसी भी दूसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाती थी तो वह इस धारा के अंतर्गत एक अपराध नहीं माना जाता था। वहीँ यदि उस शादीशुदा व्यक्ति की पत्नी अपने पति की मर्जी के या बिना इजाजत के किसी भी गैर मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनती थी तो वह कृत्य इस धारा के अंतर्गत अपराध माना जाता था और इस धारा के अंतर्गत वह व्यक्ति सिर्फ उस व्यक्ति के खिलाफ ही पुलिस में शिकायत कर सकता था जिसके साथ उसकी पत्नी ने शारीरिक सम्बन्ध बनाया था। इस धारा के अंतर्गत पति अपनी पत्नी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकता था। धारा 497 IPC के अंतर्गत इस तरह के अपराध के लिए पांच साल तक की सजा का प्रावधान था। साथ में यह एक असंज्ञेय अपराध था और एक जमानती अपराध था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्यों किया गया इस धारा को निरस्त
धारा 497 IPC भारतीय दंड संहिता को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह धारा एक असंवैधानक धारा है और नीगरिकों के समानता के अधिकारों का हनन करती है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी को पति की प्रॉपर्टी नहीं माना जा सकता। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि इस धारा के अंतर्गत दी गयी परिभाषा के पत्नी को एक प्रॉपर्टी के रूप में परिभाषित किया गया है। धारा 497 IPC भारतीय दंड संहिता की परिभाषा को पढ़ने पर यह साफ़ तौर पर स्पष्ट होता है कि पत्नी को एक प्रॉपर्टी के रूप में प्रदर्शित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी अपने पति की इजाजत के बिना किसी गैरमर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनती है तो उसके लिए सिर्फ उस व्यक्ति को सजा नहीं दी जा सकती जिसके साथ पत्नी ने नाजायज सम्बन्ध स्थापित किया। इसके लिए महिला व् वह दूसरा पुरुष जिसके साथ सम्बन्ध बनाया गया दोनों ही सामान रूप से जिम्मेदार है।
सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि यदि किसी शादीशुदा व्यक्ति की पत्नी अपने पति की इजाजत के बिना या उसकी जानकारी के बिना किसी गैरमर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनती है तो उस व्यक्ति को जिसके साथ सम्बन्ध बनाया गया दोषी नहीं माना जा सकता। धारा 497 IPC भारतीय दंड संहिता को असंवैधानिक बताते हुए कहा गया कि यदि पति चाहे कि उसकी पत्नी किसी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए तो वह अपराध ना माना जाए और यदि पति ना चाहे कि उसकी पत्नी किसी भी गैरमर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए या फिर उसकी पत्नी अपनी मर्जी से अपने पति की बिना इजाजत के किसी गैरमर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए तो उसे अपराध माना जाए यह अपने आप में इस धारा को असंवैधानिक बना देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति व् पत्नी आपस में अपने सम्बन्धों को ठीक रखने के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं। यदि सम्बन्ध आपस में बिगड़ते हैं तो किसी दूसरे व्यक्ति को दोषी नहीं माना जा सकता।
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