Section 195 A of IPC in Hindi. झूठे सबूतों के लिए धमकी और भारतीय कानून


नेमपाल सिंह के द्वारा 

Section 195 A of IPC



झूठे  सबूत देने के लिए धमकी और कानून 


     अमूमन सब लोग इस बारे में जानते ही हैं कि कई बार कई लोग झूठी गवाही या फिर किसी को नाजायज रूप से सजा दिलवाने के लिए झूठी गवाही या झूठे सबूतों का सहारा लेते हैं। अब एक परिस्थिति यह भी होती है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को झूठे सबूत देने या पेश करने के लिए धमकी देता है की वो दूसरा व्यक्ति उस धमकी के चलते या तो इस विषय में शिकायत करता है या फिर वह दूसरा व्यक्ति झूठे सबूत कोर्ट में या पुलिस के द्वारा की जा रही किसी किस्म की जाँच में पेश कर देता है।  वो धमकी काफी किस्म की हो सकती है लेकिन कानून के अनुसार इस तरह की परिस्थिति के लिए कानून किस तरह से परिभाषित है, इस बात को जानना व् समझना बहुत जरुरी है। ज्ञात रहे कि कानून को मानना व् उसका पालन करते हुए हर एक बात का ध्यान रखना बहुत अधिक आवश्यक है। अब इस धारा को समझने के लिए इस धारा के अंतर्गत दी गयी परिभाषा को समझना बहुत अधिक आवश्यक है। 

क्या कहता है भारतीय कानून 

      भारतीय कानून में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अध्याय 11 में धारा 195 A की परिभाषा दी गयी है। इस इमेज के माध्यम से आप धारा 195 A की परिभाषा को अंग्रेजी भाषा में पढ़ सकते हैं। 

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हिन्दी में परिभाषा :

धारा 195 A भारतीय दण्ड संहिता : इस धारा में दी गयी परिभाषा के अंतर्गत जो कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को या फिर उस दूसरे व्यक्ति से सम्बंधित या फिर नाता या फिर कहा जा सकता है कि ताल्लुक रखने वाले किसी भी व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुँचाने की, उसकी समाज में प्रतिष्ठा को बिगाड़ने की या फिर उसकी संपत्ति का नुकसान करने की धमकी इस उद्देश्य से देता है कि वह दूसरा व्यक्ति झूठे साक्ष्य या कहा जाए तो सबूत पेश करे तो इस प्रकार की धमकी देने वाले व्यक्ति को उसके खिलाफ दोष सिद्ध होने पर सात साल तक की सजा हो सकती है या फिर आर्थिक दण्ड के रूप में जुर्माने के द्वारा दण्डित किया जाएगा  या फिर सजा व् जुर्माना दोनों के द्वारा दण्डित किया जायेगा। 
                          इसके अलावा यदि उस धमकी के चलते दिए गए या पेश किये गए साक्ष्य या सबूतों की वजह से किसी निर्दोष व्यक्ति को फाँसी की सजा या सात साल से अधिक की सजा कोर्ट के द्वारा दी जाती है तो उस धमकी देने वाले व्यक्ति को उसी तरह की समान सजा सुनाई जाएगी जो कि निर्दोष व्यक्ति को सुनाई गई थी। 

इस धारा के मुख्यतः दो भाग हैं। जो पहला भाग है उसके अंतर्गत जो अपराध है वह संज्ञेय अपराध है और गैर जमानती अपराध है इसके अलावा जो दूसरा भाग है उसके अंतर्गत जो अपराध है वह भी पहले भाग की तरह एक संज्ञेय अपराध माना जाएगा और गैरजमानती माना जाएगा।  इस प्रकार यदि देखा जाए तो कहा जा सकता है कि दोनों ही भागों में इस धारा के अंतर्गत अपराध संज्ञेय और गैर जमानती है। यदि कोई अंतर है तो वह सजा का अंतर सरल रूप में समझा जा सकता है। 

कानून के अंतर्गत ध्यान रखने योग्य कुछ अन्य बातें 
      
       कानून के अंतर्गत एक बात पर ध्यान देना बहुत अधिक आवश्यक है जो पिछली पोस्ट्स में भी बताई गयी है कि भारतीय कानून के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति की अनभिज्ञता के कारण कोई अपराध कर देता है तो वह यह बात अपने पक्ष में नहीं कह सकता कि उसे कानून का ज्ञान नहीं था। इस प्रकार की बात कानून के अंतर्गत मान्य नहीं है। भारतीय कानून के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति तथ्यों को नज़र अंदाज़ करे तो माना भी जा सकता है लेकिन यदि कानून को नज़र अंदाज़ करे तो वह बात कानून के अंतर्गत बिलकुल मानी नहीं जा सकती। इस प्रकार कहा जा सकता है कि हर एक व्यक्ति को कानून के विषय में अधिक से अधिक जानकारी होनी आवश्यक है। 

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