Supreme Court Order on 497 IPC in Hindi 2018. नाजायज सम्बन्ध अब अपराध नहीं


नेमपाल सिंह के द्वारा 

Supreme Court Judgement on 497 IPC. 

जारता या नाजायज सम्बन्ध अब अपराध नहीं 

     वैसे तो अभी तक बहुत से ऐसे फैसलों के बारे में आपने सुना होगा जो हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  इस साल 2018 में सुनाए गए हैं। जैसे कि इस साल में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिकों के अधिकार को लेकर धारा 377 IPC, भारतीय दंड संहिता को निरस्त करते हुए कहा था कि यह धारा निजता के अधिकार जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आती है के खिलाफ है और अब धारा 497 भारतीय दंड संहिता को भी एक आदेश के द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया है। 
                         आपकी जानकारी के लिए यह बताना आवश्यक है कि अब अडल्ट्री अर्थात जारता यानि कि नाजायज सम्बन्ध अब कानूनन रूप से अपराध नहीं है। फैसला सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 497 IPC, भारतीय दंड संहिता असंवैधानिक है क्योंकि यह समानता के अधिकार का कहीं ना कहीं हनन करती है। आपकी जानकारी के लिए यह बताना आवश्यक है कि फैसला सुनते हुए पांच जजों की बैंच जिनमें माननीय मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा व् अन्य चार जजों की बैंच ने यह कहा कि पत्नी पति की प्रॉपर्टी नहीं है वह भी एक इंसान है और उसे भी अपनी ज़िन्दगी जीने का उतना ही हक़ है जितना कि एक पति को है।  कहा जा सकता है कि 497 IPC के अंतर्गत यह कानून था कि यदि किसी भी व्यक्ति की पत्नी, पति  की सहमति से यदि किसी गैरमर्द के साथ सम्बन्ध बनती थी तो उसे अडल्ट्री यानि की जरता नहीं माना जाता था और यदि पति की सहमति के बिना पत्नी द्वारा सम्बन्ध बनाया जाता था चाहे इसमें पत्नी की खुद की सहमति क्यों ना हो पति उस दूसरे व्यक्ति के खिलाफ IPC 497 धारा के अंतर्गत क़ानूनी कार्यवाही  कर सकता था। यानि कि अगर देखा जाए तो पत्नी को कहीं ना कहीं असामनता का उस परिपेक्ष्य में सामना करना पड़ता था कि जिसके अंतर्गत पति की सहमती को सर्वोपरि माना गया था क्योंकि कानून के अंतर्गत पत्नी को प्रॉपर्टी या फिर किसी सामान के रूप में चित्रित या परिभाषित किया गया है। हलाकि पति की मर्जी के बिना यदि पत्नी अपनी खुद की सहमति से किसी भी गैर मर्द के साथ सम्बन्ध बनती थी तो उस परिस्थिति में भी पत्नी दोषी नहीं मानी जाती थी और ना ही पत्नी के खिलाफ किसी भी किस्म की कानूनी कार्यवाही की जा सकती थी। अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पति यदि चाहेगा तो वह इस बात की इजाजत दे सकता था कि उसकी पत्नी किसी दूसरे पुरुष के साथ सम्बन्ध बनाए ठीक उसी तरह जिस तरह किसी भी भौतिक सामान को किसी के हवाले किया जाता है। लेकिन यदि पति की सहमति ना हो तो वह इस धारा के अंतर्गत मुकदमा दूसरे पुरुष के खिलाफ दर्ज करा सकता था जिसमें कि पांच साल तक की सजा का प्रावधान है। ठीक उसी तरह जिस तरह किसी की  कोई भी भौतिक वास्तु को कोई दूसरा व्यक्ति बिना इजाजत के उठा ले या अपने पास रख ले। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यह पुरुष व् महिला के बीच असमानता को प्रदर्शित करता है।  उधर यदि इस धारा के अंतर्गत दी गयी परिभाषा को देखा जाए तो यह आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि परिभाषा के अनुसार पति व् पत्नी में असमानता झलकती है। क्योंकि पत्नी को एक प्रोपर्टी के रूप में परिभाषित किया गया है जबकि पत्नी पति की प्रॉपर्टी नहीं बल्कि एक इंसान है और उसे भी पति के बराबर ही समानता से जीने का अधिकार है। तो यहाँ यह कहा जा सकता है कि अब सुप्रीम कोर्ट के इस आर्डर के बाद पति व् पत्नी को समान दर्जा दिया गया है। 

क्या कहती थी धारा 497 भारतीय दंड संहिता 

          धारा 497 IPC, भारतीय दंड संहिता के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की पत्नी के साथ बिना उस महिला के पति की इजाजत या सहमति के उस महिला की पूर्ण सहमति से यौन सम्बन्ध बनाता है जिसे बलात्कार नहीं माना जा सकता तो वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाता था। इसके लिए उस व्यक्ति को पांच साल तक की सजा हो सकती थी या आर्थिक दंड के रूप में  जुर्माने के द्वारा दण्डित किया जा सकता था। या फिर सजा व् जुर्माने दोनों के द्वारा दण्डित किया जा सकता था। इस धारा के अंतर्गत पत्नी को किसी भी तरह से दोषी नहीं माना जा सकता था। 

यह एक असंज्ञेय अपराध था और एक जमानती अपराध था। संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में अधिक जानकारी के लिए (click here, यहाँ क्लिक करें) 


इस धारा के अंतर्गत अंग्रेजी में परिभाषा आप इस इमेज के माध्यम से पढ़ सकते हैं। 

कानून के अंतर्गत क्या हुआ बदलाव 

        अब यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि धारा 497 IPC, को असंवैधानिक करार देते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 497 IPC, भारतीय दंड संहिता को निरस्त कर दिया है आज की यदि बात की जाए तो आज धारा 497 IPC, भारतीय दंड संहिता का कोई अस्तित्व नहीं है। अब इस धारा के अंतर्गत पुलिस के द्वारा कार्यवाही नहीं की जा सकती है अर्थात अब इस धारा के अंतर्गत जारता या अडल्ट्री अब कोई अपराध नहीं है। हालां कि अडल्ट्री फैमिली कोर्ट में तलाक के सम्बन्ध में अभी भी मान्य है जो अडल्ट्री तलाक के सन्दर्भ में परिभाषित है वह उस किस्म की जारता है जिसमें चाहे पति हो या पत्नी हो यदि कोई भी नाजायज सम्बन्ध रखता है तो वह तलाक के सन्दर्भ में जारता या अडल्ट्री माना जायेगा। 

For more information about this topic watch our YouTube video : (click here, यहाँ क्लिक करें)



No comments:

Most Popular Post

Love Marriage and protection In Hindi.प्रेम विवाह व् भारतीय कानून

Love Marriage, protection and Indian Law नेमपाल सिंह के द्वारा

Powered by Blogger.