जीरो ऍफ़ आई आर क्या है? What is zero FIR in Hindi


नेमपाल सिंह के द्वारा 




जीरो ऍफ़ आई आर क्या है (What is zero FIR)
         अक्सर आपने जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) के बारे में सुना होगा। आज इस पोस्ट के माध्यम से आप यह जानेंगे कि जीरो ऍफ़ आई आर क्या है और कानून में इसकी क्या मान्यता है। सबसे पहले यह जानना जरुरी है कि जीरो ऍफ़ आई आर क्या होती है ? अक्सर आपने कुछ ऐसे अपराधों के विषय में सुना होगा जो कि किसी और स्थान में घटित होते हैं और उस अपराध के सन्दर्भ में ऍफ़ आई आर किसी और इलाके के थाने में लिखी जाती है। ऐसा कई बार कई प्रकार की परिस्थितियों के कारण होता है। यह जानना आवश्यक है कि ऍफ़ आई आर आखिरकार किन परिस्थितियों में लिखी जाती है। यह बताना आवश्यक है कि जब कभी कोई भी संज्ञेय अपराध घटित होता है जैसे हत्या, डैकेती, गोली चलाना, बलात्कार जैसे बड़े अपराध, तो उस घटना के सन्दर्भ में घटना स्थल की इलाके की पुलिस के द्वारा प्राथमिकी अर्थात ऍफ़ आई आर दर्ज करना अत्यंत आवश्यक होता है। संज्ञेय अपराधों के विषय मैं यदि बात की जाये तो यह ऐसे अपराध होते है जिनके सन्दर्भ में पुलिस के लिए यह कानूनन रूप से अत्यंत आवश्यक है की पुलिस पहले ऍफ़ आई आर दर्ज करे। कानूनन रूप से पुलिस संज्ञेय अपराधों के सन्दर्भ में ऍफ़ आई आर दर्ज करने के लिए बाध्य है। ज्यादातर संज्ञेय अपराध भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार गैरजमानती होते हैं।(संज्ञेय और असंज्ञेय अपराधों के विषय में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें) पुलिस हमेशा ऍफ़ आई आर धारा 154 सी आर पी सी के अंतर्गत दर्ज करती है। जब कभी भी संज्ञेय अपराध घटित होता है तो पुलिस के लिए कानूनन रूप से बिना वारंट के सिर्फ उस घटना के विषय में मिली जानकारी के आधार पर प्राथमिकी अर्थात ऍफ़ आई आर दर्ज करना जरुरी होता है। पुलिस किसी भी संज्ञेय और गैरजमानती अपराध के सन्दर्भ में  ऍफ़ आई आर दर्ज करने के लिए बाध्य है। लेकिन कई बार इस प्रकार की परिस्थिति भी आती है जब घटना किसी और इलाके में होती है और ऍफ़ आई आर किसी और इलाके में दर्ज की जाती है। इस प्रकार की परिस्थिति जीरो ऍफ़ आई आर से सम्बंधित होती है। 

क्या कहता है भारतीय क़ानून :
      जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) के सन्दर्भ में  कहा जा सकता है कि जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) उस परिस्थिति में दर्ज की जाती है जबकि  संज्ञेय अपराध या कोई संज्ञेय घटना किसी और इलाके में घटती है और उस घटना के सन्दर्भ में जो प्राथमिकी अर्थात ऍफ़ आई आर दर्ज की जाती है वह किसी और इलाके की पुलिस के द्वारा दर्ज की जाती है।  जब कभी भी सामान्य रूप से ऍफ़ आई आर पुलिस के द्वारा दर्ज की जाती है तो उनकी एक क्रमांक संख्या होती है। जिसे मुदकमा संख्या कहा जाता है।  लेकिन जीरो ऍफ़ आई आर में कोई भी क्रमांक संख्या पुलिस के द्वारा दर्ज नहीं की जाती है। इस प्रकार की ऍफ़ आई आर को ही जीरो ऍफ़ आई आर कहा जाता है। अब उदहारण के तौर पर देखा जाए हो तो यदि किसी महिला की किसी अपराधी के द्वारा गले की चैन को खींच कर निकाल ले जाता है और वह महिला किसी की सहायता से या फिर खुद उस अपराधी का पीछा करती है और वो किसी और थाने के अंतर्गत आने वाले इलाके में पहुँच जाती है और वहां उस इलाके के थाने में वो जो घटना के सन्दर्भ में शिकायत दर्ज कराती है और जो पुलिस उस घटना के सन्दर्भ में प्राथमिकी दर्ज करेगी उसे जीरो क्रमांक के रूप में दर्ज करेगी जिसे जीरो ऍफ़ आई आर कहा जाता है।
              वैसे भारतीय कानून में जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) के विषय में कोई धारा नहीं है, यह कहा जा सकता है कि जीरो ऍफ़ आई आर कानून के अंतर्गत एक ऐसा पहलु है जिसके सन्दर्भ में कोई भी लिखित कानून अभी तक नहीं है।  जैसा कि इस पोस्ट में पहले बताया गया है कि ऍफ़ आई आर सामान्य रूप से जो दर्ज की जाती है वह धारा 154 सी आर पी सी के अंतर्गत दिए गए कानून के अंतर्गत ही दर्ज की जाती है और जीरो ऍफ़ आई आर के विषय में लिखित कानून न होते हुए भी जीरो ऍफ़ आई आर को धारा 154 सी आर पी सी के अंतर्गत ही दर्ज किया जाता है।

जीरो ऍफ़ आई आर के विषय में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य 
     यदि जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) के इतिहास के विषय में बात की जाए तो पहले जीरो ऍफ़ आई आर का कोई भी संकल्पना नहीं थी।  लेकिन समाज मैं अपराध के बढ़ने के साथ साथ जीरो ऍफ़ आई आर जैसे प्रावधान की जरुरत महसूस हुई। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि बहुत से ऐसे बड़े अपराध होने के कारण और पुलिस तंत्र में मुकदमा दर्ज करने की जटिलताओं को देखते हुए जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) जैसी प्रावधान की कानून में जरुरत महसूस हुई। जीरो ऍफ़ आई आर जैसे प्रावधान के पीछे मुख्या कारण था की जटिलताओं को दरकिनार करके संज्ञेय अपराधों के सन्दर्भ में तुरंत ऍफ़ आई आर दर्ज की जाये चाहे वो किसी भी थाने में करनी पड़े। और मामले की गहनता से जांच शुरू हो सके। शिकायत यदि समय पर दर्ज ना हो तो किसी प्रकार से भी सबूतों को मिटाए जाने की आशंका बानी रहती है जो की मामले  की जाँच में सीधा असर डालती हैं। अब सवाल यह उठता है कि जीरो ऍफ़ आई आर वाले मामलों में पुलिस जाँच किस प्रकार से करती है। कानूनन रूप से पहले जीरो ऍफ़ आई आर दर्ज की जाती है जो कि जीरो क्रमांक में होती है और फिर उस ऍफ़ आई आर को सम्बंधित इलाके के थाने में भेज दिया जाता है और वहां उस ऍफ़ आर आर का क्रमांक दर्ज किया जाता है। जीरो ऍफ़ आई आर अमूमन हत्या, बलात्कार व् अन्य बड़े मामलों में अधिक दर्ज की जाती है और जीरो ऍफ़ आई आर दर्ज करते ही पुलिस द्वारा मामले की जाँच करना और फौरी तौर पैर अपराधियों को गिरफ्तार किया जाना भी आवश्यक है।  जीरो ऍफ़ आई आर को दर्ज करने से पुलिस द्वारा माना नहीं किया जा सकता है।  यदि किसी पुलिस के अधिकारी के द्वारा जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) दर्ज करने से माना किया जाता है तो उस विषय में पुलिस के उच्च अधिकारिओं को शिकायत की जा सकती है।

जीरो ऍफ़ आई आर का हो सकता है नाजायज इस्तेमाल 
          कई बार जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) का नाजायज इस्तेमाल भी होता है उदहारण के तौर पर कई बार ऐसा भी  होता है कि दो पक्षों की लड़ाई में दोषी पक्ष संज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में किसी और थाने में जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) दर्ज करा देते हैं और जिसकी वजह से पीड़ित पक्ष जो कि निर्दोष होने के बावजूद उनके खिलाफ जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) पुलिस द्वारा दर्ज कर ली जाती है और वहीँ पीड़ित पक्ष के द्वारा घटना वाले इलाके में ऍफ़ आई आर सामान्य रूप से दर्ज कर ली जाती है। जिससे परिस्थितियां जटिल हो जाती है।  इस प्रकार कहा जा सकता है कि जहाँ जीरो ऍफ़ आई आर कानूनन रूप से महत्व रखती है तो वहीँ जीरो ऍफ़ आई आर (zero FIR) का गलत इस्तेमाल होने का भी खतरा बना रहता है।

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