Section 304 IPC in Hindi. गैर इरादतन हत्या


नेमपाल सिंह के द्वारा 



Section 304 of IPC. गैर इरादतन हत्या 


     समाज में बढ़ रहे अपराधों के कारण अपराध को रोकने के लिए भारतीय कानून में समय समय पर बदलाव किए जाते हैं और यदि कहा जाए तो कानून में बदलाव का होना भी आवश्यक है। यूँ तो समाज में कानून और व्यवस्था को कायम रखने की पहली जिम्मेदारी पुलिस की है लेकिन कानून के अनुसार चलना भी एक जिम्मेदार नागरिक के लिए बेहद जरुरी है। अब इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए कानून की जानकारी का होना बहुत अधिक आवश्यक है। अमूमन देखा जाता है कि कानून की अनभिज्ञता के कारण लोगों के द्वारा जाने अनजाने में कुछ ऐसे अपराध कर दिए जाते हैं जिसके बाद उनके लिए अपने पक्ष में बोलने के लिए कुछ नहीं बचता। अब इस धारा के अंतर्गत किस तरह की परिस्थिति आती है इसके बारे में जानना भी जरुरी है क्योंकि कहा जा सकता है कि इस धारा के अंतर्गत एक ऐसा अपराध आता है। जिसके लिए कानून के अंतर्गत सजा का प्रावधान दिए गया है।  

क्या कहता है भारतीय कानून 

   इस धारा (section 304 IPC) के अंतर्गत दी गयी अंग्रेजी परिभाषा को आप इस इमेज के माध्यम से पढ़ सकते है। 
CLASSIFICATION OF OFFENCE

Part I: In the part, I under this section the offence is cognizable and non-bailable.

Part II: In the second part under this section the offence is also cognizable and non-bailable.

For more information about bailable and non-bailable offences (click here, यहाँ क्लिक करें)

हिंदी में परिभाषा 

धारा 304 IPC भारतीय दंड संहिता : जो कोई भी व्यक्ति गैर इरादतन हत्या करता है जिसे हम कह सकते है कि जो कार्य हत्या की श्रेणी में नहीं आता है या कोई भी ऐसा कार्य करता है जो बाद में मृत्यु का कारण बन जाए और वो कार्य मृत्यु के इरादे से ही किया गया हो या कोई ऐसी शारीरिक चोट जिसके कारण यह सम्भावना हो कि मृत्यु हो सकती है और ऐसी परिस्थिति में वो चोट मृत्यु का कारण बन जाए तो ऐसा अपराध करने वाले अपराधी को उसके खिलाफ इस धारा के अंतर्गत दोष सिद्ध होने पर आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी या फिर दस साल तक की सजा के द्वारा दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के द्वारा भी दण्डित किया जा सकता है या सजा व् जुर्माना दोनों के द्वारा दण्डित किया जाएगा।  
               इस धारा (section 304 IPC) की परिभाषा का जो दूसरा पहलू है उसके अनुसार और इस धारा के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति जानते-बूझते हुए और यह ज्ञान रखते हुए कि जो कार्य वो करता है उससे उसे यह सम्भावना हो कि उस कार्य से मृत्यु हो सकती है और वो कार्य मृत्यु का कारण हो लेकिन वो कार्य ऐसा हो जिसे मृत्यु देने के इरादे से वो ना किया गया हो या फिर ऐसी शारीरिक चोट जिसके बारे में उस व्यक्ति को ज्ञान हो कि उसके द्वारा चोटों से मृत्यु हो सकती है लेकिन मृत्यु के इरादे से चोटें ना पहुंचाई गई हों तो उस परिस्थिति में अपराधी को दस साल तक की सजा कोर्ट के द्वारा सुनाई जा सकती है और जुर्माना भी किया जा सकता है या फिर सजा व् जुर्माना दोनों के द्वारा दण्डित किया जाएगा।

>>>> इस धारा (section 304 IPC) के दो भाग हैं पहले भाग के अंतर्गत अपराध एक संज्ञेय अपराध माना जाएगा व् गैरजमानती होगा। इसी के साथ ही साथ इस धारा के अंतर्गत दूसरे पहलू या फिर कहा जाए दूसरे भाग के अंतर्गत यह अपराध एक संज्ञेय अपराध होगा और गैरजमानती माना जाएगा। अर्थात दोनों ही भागों में इस धारा के अंतर्गत अपराध संज्ञेय और गैरजमानती होता है।  
>>>> संज्ञेय और असंज्ञेय अपराधों के विषय में अधिक जानकारी के लिए (यहाँ क्लिक करें, click here)

            अब यदि सरल शब्दों में बात की जाए तो इस धारा (section 304 IPC) के अंतर्गत दो तरह की परिस्थितियां दी गयी हैं। पहली परिस्थिति में यदि कोई भी व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करता है जिसमें उस व्यक्ति का किसी दूसरे व्यक्ति को जान से मारने का इरादा होता है लेकिन जो वह व्यक्ति कार्य करता है या फिर इस किस्म की चोटें उस दूसरे व्यक्ति को पहुंचाता है कि जिसके कारण उस कार्य के द्वारा दूसरे व्यक्ति की बाद में मृत्यु हो जाती है। जिसे हम हत्या नहीं कह सकते हैं। यहाँ यह जानना जरुरी है कि एक व्यक्ति के द्वारा चोटें तो पहुंचाई गयी और कोई ऐसा कार्य भी किया गया जिससे दूसरे व्यक्ति की मृत्यु हो जाए लेकिन वह मृत्यु उस समय ना हो कर उस किये गए कार्य या चोटों के कारण बाद में होती है तो वह व्यक्ति इस धारा (section 304 IPC) के अंतर्गत दोषी माना जाएगा। 
               इसी धारा (section 304 IPC)  के अंतर्गत इस धारा की परिभाषा का जो दूसरा भाग है उसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करता है या फिर दूसरे व्यक्ति को इस प्रकार की चोटें मारता है जो कि उस दूसरे व्यक्ति को जान से मारने के इरादे से नहीं मारी जाती हैं लेकिन मारने वाले व्यक्ति को इस बात का आभास या ज्ञान होता है कि वह व्यक्ति उस कार्य के द्वारा या फिर उन शारीरिक चोटों के द्वारा मर सकता है और वही कार्य या फिर शारीरिक चोटें उस दूसरे व्यक्ति की बाद में मृत्यु का कारण बन जाती है। यानि कि मृत्यु उस समय ना होकर बाद में होती है तो वह मारने वाला व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाएगा। 
           

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